भारत को दिया Hajmola, Real Juice…और भी बहुत कुछ, जानें 140 साल पुरानी कंपनी कैसे हुई सफल

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आज शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जहां डाबर के प्रोडक्ट का इस्तेमाल न होता हो। डाबर तेल, डाबर शहद, डाबर रियल जूस, डाबर पेस्ट ऐसे कई और प्रोडक्ट ये कंपनी बना चुकी है। आपके घर में डाबर का एक न एक प्रोडक्ट जरूर मिल जाएगा।

देखो हाजमोला कैसे बनता है ! Dabur Hajmola Kaise Banta Hai ! How Dabur  Hajmola is Made. - YouTube

आइए जानते हैं कि इस कंपनी की शुरुआत कैसे हुई और कैसे इसने इतना बड़ा साम्राज्य बनाया?

कैसे हुई शुरुआत?
साल 1884 में बंगाल के एक चिकित्सक डॉ बर्मन ने ग्रामीण लोगों का इलाज करने के लिए दवाखाने की शुरुआत की थी। इसका मकसद ग्रामीण लोगों का इलाज करना है। डॉ बर्मन ने मलेरिया, हैजा और प्लेग जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई।
देखते ही देखते उनकी दवाइयों के हर जगह चर्चा होने लगी। उन्हें ही बाद में डाबर कहा जाने लगा। हालांकि इस कार्यभार को संभाला इतना आसान नहीं था। फिर इसे दिल्ली में भी ले जानें का निर्णय लिया गया। इस तरह से ये पूरे देश में फैली। डाबर का विजन स्पष्ट था, वे नई तकनीक के साथ आयुर्वेदिक प्रोडक्ट बनाना चाहती थी।

डाबर फिर आयुर्वेद के साथ कई और प्रोडक्ट या क्षेत्र में जाने लगी। उन्होंने खुद को आयुर्वेद तक सीमित नहीं रखा। इसलिए आज आलम ये है कि वे विदेशी कंपनियों से मुकाबला कर रही है।

साल 1936 डाबर ने खुद को डाबर इंडिया के नाम से रजिस्टर्ड किया।

साल 1972 में वे दिल्ली की ओर शिफ्ट होने लगी।

साल 1986 में Vidogum के साथ Reverse Merger होकर पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई।

साल 1994 में डाबर ने शेयर बाजार में अपनी एंट्री ली।

साल 1996 में इस कंपनी के तीन अलग-अलग डिविजन हुए, ताकि ये सही ढंग से काम कर पाएं।

साल 2000 में ही डाबर ने 1000 करोड़ रुपये का टर्नओवर क्रॉस कर दिया था।

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