दिल्ली में एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी से हुई ठगी की राशि और कहानी जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। 47 दिन तक चले ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रिटायर्ड अधिकारी से करीब 23 करोड़ रुपये ठग लिए गए। माना जा रहा है कि यह दिल्ली ही नहीं देश का सबसे बड़ा ‘डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड’ है। साइबर अपराधियों ने खुद को सरकारी अधिकारी बताते हुए उन्हें पहलगाम आतंकी हमले के नाम पर डराया और यह कहकर पैसे ट्रांसफर करा लिए कि जांच पूरी होने के बाद वापस कर दिए जाएंगे। रिजर्व बैंक के नाम से लेटर, जांच अधिकारी से लेकर कोर्ट तक सबकुछ इतना असली जैसा था कि पीड़ित को कोई शक नहीं हुआ और 22.92 करोड़ रुपये दे बैठे। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है और अब तक करीब 2.5 करोड़ रुपये की राशि फ्रीज कर दी है।
बैंक में दशकों तक नौकरी कर चुके नरेश मल्होत्रा साउथ दिल्ली के गुलमोहर पार्क में अकेले रहते हैं। ठगी की इस कहानी की शुरुआत 1 अगस्त को होती है। एक महिला ने खुद को एयरटेल की कर्मचारी बताते हुए कहा कि उनके लैंडलाइन नंबर का इस्तेमाल मुंबई में कई बैंक अकाउंट खोलने के लिए हुआ है। उसने दावा किया कि इन खातों का इस्तेमाल 1300 करोड़ रुपए की टेरर फंडिंग के लिए हुआ है, जो पुलवामा आतंकी हमले से जुड़ा हुआ है।
नरेश मल्होत्रा को बताया गया कि उन्हें नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ऐक्ट के तहत गिरफ्तार किया जाएगा। इसके बाद उसने कुछ लोगों ने खुद को मुंबई पुलिस का अधिकारी बताते हुए बात की। मल्होत्रा से कहा गया कि वह वीडियो कॉल से जुड़ें और वेरिफिकेशन प्रक्रिया को पूरा करें। डरे हुए नरेश ठगों की जाल में फंस चुके थे और अब वह उनके आदेशों का पालन करने लगे।
वीडियो कॉल के दौरान फर्जी अधिकारियों ने नरेश मल्होत्रा को बैंक फ्रॉड में शामिल बताते हुए एक शख्स की तस्वीर दिखाई और पूछा कि क्या उनका इससे कोई कनेक्शन है। पीड़ित ने इससे इनकार किया। साइबर अपराधियों ने उन्हें अरेस्ट वारंट और चार्जशीट बताते हुए कुछ दस्तावेज भेजे जिन्हें देखकर मल्होत्रा और अधिक डर चुके थे। इस स्थिति में उनसे घर, बैंक अकाउंट, फिक्स्ड डिपॉजिट, शेयर में निवेश और लॉकर से संबंधित ब्यौरा मांगा।
इससे पहले कि नरेश मल्होत्रा किसी से इन बातों को साझा करते साइबर अपराधियों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। उन्हें यह कहते हुए और डराया कि यदि किसी के सामने इन बातों को लीक किया तो उन्हें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (पीएमएलए) के तहत छह महीने के लिए हिरासत में ले लिया जाएगा। बाद में उन्हें बताया गया कि उनके लिए जमानत की व्यवस्था की गई है और यदि वह सहयोग करेंगे तो परेशानी से बच जाएंगे। रिटायर्ड अधिकारी को बताया गया था कि उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है और 24 घंटे सर्विलांस पर हैं।
बैंक अधिकारी से कहा गया कि उनके हर बैंक अकाउंट की जांच की जाएगी। हर दिन नरेश मल्होत्रा से कुछ घंटे पूछताछ होती थी और उन्हें एक तरफ डर दिखाया जाता था तो दूसरी तरफ मदद का भरोसा भी। फर्जी अधिकारियों के निर्देश पर नरेश मल्होत्रा ने शेयर मार्केट में किए अपने निवेश को भुनाया और 12.84 करोड़ रुपये ठगों के बताए अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए।
इससे पहले वह अपने सेविंग अकाउंट से 14 लाख रुपये ठगों को ट्रांसफर कर चुके थे। साइबर क्रिमिनल्स यहीं नहीं रुके। वह नरेश मल्होत्रा को डराते हुए और अधिक पैसे ट्रांसफर करने को मजबूर करते रहे। उन्होंने कॉलर्स के दिए अन्य बैंक अकाउंट में 9.90 करोड़ रुपये और ट्रांसफर किए। सितंबर तक वह कुल 22.92 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर चुके थे।
4 सितंबर को एक नए फर्जी अधिकारी ने नरेश मल्होत्रा से बात की और खुद को ईडी का अधिकारी बताया। उसने कहा कि केस ईडी को ट्रांसफर कर दिया गया है। उसने सुप्रीम कोर्ट का एक कथित आदेश दिखाते हुए कहा कि उनकी ओर से जमा कराए गए पैसे तभी वापस होंगे जब वह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में 5 करोड़ रुपये और जमा करेंगे। कॉलर ने 5 करोड़ रुपये कोलकाता की एक प्राइवेट कंपनी में जमा कराने को कहा। शक होने पर मल्होत्रा ने इनकार कर दिया। इसके बाद ठगों ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के कथित आदेश की एक कॉपी भेज जिस पर फर्जी तरीके से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का साइन किया गया था। इसमें उन्हें निर्देश दिया गया था कि वह 5 करोड़ रुपये जमा करा दें।