प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राममंदिर पर धर्म ध्वजारोहण के साथ जहां एक संकल्प की सिद्धि प्राप्त की, वहीं उन्होंने अपने उद्बोधन के जरिये समाज, संगठन और सरकार को नए संकल्पों के लक्ष्य भी दिए। संकल्प – सुखी समृद्ध समाज का, सर्वसमावेशी राजनीति और गुलामी की मानसिकता से आजादी का…। इन संकल्पों के जरिये जहां उन्होंने विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस को निशाने पर लिया वहीं वाल्मीकि, शबरी, अहिल्या और निषाद राज के मंदिरों के दर्शन के जरिये ‘सबका साथ-सबका विकास’ की राजनीति को और सशक्त कर गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक धर्म ध्वजारोहण को भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का अवसर बताकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत करने का संदेश दिया।
प्रधानमंत्री ने ‘सदियों के घाव भर रहे हैं, सदियों की वेदना विराम पा रही है, के वचनों के जरिये धार्मिक राष्ट्रवाद को और भी सशक्त करने का प्रयास किया। साथ ही इन शब्दों से उन्होंने राम मंदिर के लिए संघर्ष करने वाले भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं के संघर्षों को याद कर उन्हें सांत्वना देने की कोशिश की। प्रधानमंत्री ने राम के मर्यादा स्वरूप की नए ढंग से व्याख्या कर समाज को उनके आदर्शों को आत्मसात करने की सीख दी। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस के दोहे, ‘बैर न विग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा।’ के जरिये प्रधानमंत्री ने समाज में वैमनस्यता का कोई स्थान न होने का संदेश दिया। उन्होंने कहा-ऐसा समाज हो जहां न कोई निर्धन हो, न कोई दुखी हो और न कोई वैमनस्य हो। हर किसी को बिना भेदभाव के उसका हक मिले। प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए धर्मध्वज आरोहण से समाज के हर वर्ग को जोड़ने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धर्मध्वजारोहण से पूर्व भगवान वाल्मीकि, निषाद राज गुह, शबरी के मंदिरों में दर्शन किया। उन्होंने उद्बोधन में इसका जिक्र कर खासतौर पर ओबीसी व जनजातीय समाज को कार्यक्रम की महत्ता के साथ जोड़ा। इसके जरिये उन्होंने न केवल सर्वसमावेशी राजनीति के पार्टी और अपने संकल्प को दोहराया बल्कि संगठन को साफ संकेत दिए कि विकसित भारत के संकल्प की पूर्ति तभी संभव है, जब राजनीति में इन जातियों के भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रण शामिल होगा। शायद इसीलिए उन्होंने अपने कार्यकाल में महिलाओं, दलितों और अन्य सभी वर्गों को विकसित किए जाने के लिए किए जा रहे कामों का उल्लेख कर सभी जातियों की सामूहिक शक्ति की महत्ता का जिक्र किया, उन्होंने कहा, जब तक सबका प्रयास नहीं होगा, तब तक विकसित भारत की परिकल्पना असंभव है।
सत्तारुढ़ होने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में गुलामी के प्रतीकों को खत्म करना मुख्य रूप से शामिल रहा है। चाहे राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ रखना हो या फिर नौसेना के ध्वज से गुलामी के चिन्ह को हटाना। प्रधानमंत्री ने धर्मध्वजारोहण के मौके पर एक नए संकल्प का लक्ष्य देकर भविष्य की राजनीति की दिशा तय कर दी। उन्होंने 10 वर्षों में गुलामी की मानसिकता के सभी चिन्हों को खत्म करने का प्रण लेकर न केवल कांग्रेस को घेरा बल्कि यह साफ कर दिया कि पार्टी और संगठन की राजनीति की दिशा आने वाले वक्त में भी राष्ट्रवाद और भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण पर ही केंद्रित रहेगी।
राम मंदिर ध्वजारोहण कार्यक्रम को एक बार फिर भव्य बनाए जाने को भारतीय जनता पार्टी की वर्ष 2024 में लोकसभा चुनावों में विपक्ष के हाथों मिली चुभन को कम करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। कहना गलत न होगा कि 22 जनवरी 2024 को ऐन लोकसभा चुनावों से पूर्व राममंदिर का उद्घाटन भी कुछ इसी तर्ज पर किया गया था। पार्टी ने इसके जरिये संदेश देने की कोशिश की थी, लेकिन विपक्ष के पीडीए के चलते अयोध्या की लोकसभा सीट तो भाजपा हारी ही, वहीं आसपास की सीटों बाराबंकी, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, बस्ती सपा और अमेठी कांग्रेस ने जीत ली थीं। देखना दिलचस्प होगा कि अब मिशन-2027 में पार्टी इसका कितना लाभ उठाने में कामयाब होती है।