अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ को लेकर लगातार दी जा रही धमकियों के बीच रूस ने मंगलवार को दशकों पुरानी उस रोक को खत्म कर दिया, जिसमें वह 500 से 5500 किलोमीटर रेंज की परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों का निर्माण और तैनाती नहीं करता था। ये मिसाइलें 1987 के इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स (आईएनएफ) संधि के तहत प्रतिबंधित थीं। क्रेमलिन ने साफ कर दिया है कि रूस खुद को किसी भी तरह से सीमित नहीं मानता और जब जरूरत होगी, वह सार्वजनिक ऐलान के बिना मिसाइलें तैनात करेगा। रूस के इस कदम ने न्यूक्लियर वॉर की आशंका को बढ़ा दिया है।
अमेरिका ने तोड़ा समझौता, रूस ने उठाया कदम
आईएनएफ संधि को ट्रंप सरकार ने 2018 के पिछले कार्यकाल के दौरान समाप्त कर दिया। हालांकि तब रूस ने कहा था कि जब तक अमेरिका अपने मिसाइल सिस्टम रूस की पहुंच में तैनात नहीं करता, तब तक वो भी संयम बरतेगा। लेकिन अब रूस का आरोप है कि अमेरिका ने डेनमार्क, फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया में ऐसे सिस्टम भेज दिए हैं।
रूस के विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा, “अमेरिका और उसके सहयोगी न केवल INF मिसाइलों को तैनात करने की योजना बना चुके हैं, बल्कि उसे लागू करने में काफी आगे भी बढ़ चुके हैं।”
ट्रंप-मेदवेदेव के बीच जुबानी जंग
रूस का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो परमाणु पनडुब्बियों को “इस क्षेत्र” में तैनात करने की घोषणा की। यह बयान उन्होंने रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के साथ एक ऑनलाइन बहस के बीच दिया। इसके जवाब में मेदवेदेव ने सोमवार को कहा, “अब हमारे विरोधियों को नई हकीकत के लिए तैयार रहना चाहिए। और कदम उठाए जाएंगे।”
भारत के लिए क्या मायने?
अमेरिका और रूस के बीच मिसाइल टकराव का यह नया दौर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नई अस्थिरता ला सकता है। भारत जैसी शक्तियों के लिए यह रणनीतिक चिंता का विषय बन सकता है, क्योंकि इन मिसाइलों की पहुंच दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक भी हो सकती है।