जंग ने बदली किस्मत! कैसे ईरान युद्ध ने नेतन्याहू को इजरायल में फिर से हीरो बना दिया

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ईरान और इजरायल के बीच भयंकर युद्ध चल रहा है। पिछले छह दिनों में दोनों ओर से हवाई हमलों में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। मध्य पूर्व पर बड़ा संकट मंडरा रहा है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बयानबाजी ने तीसरे विश्व युद्ध की अटकलों को बरकरार रखा है। इस बीच इजरायल में कैसा माहौल है? रिपोर्ट के अनुसार, ईरान युद्ध ने इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की सत्ता में ढीली होती पकड़ को एक बार फिर से मजबूत कर लिया है। एक वक्त था जब नेतन्याहू की सत्ता डगमगाने लगी थी। गाजा में चल रहे युद्ध को लेकर उन पर भारी आलोचना हो रही थी, गठबंधन सरकार में दरारें दिख रही थीं और जनता का भरोसा टूटता नजर आ रहा था। लेकिन अब हालात पलट चुके हैं।

नेतन्याहू ने ईरान पर प्री-एम्पटिव (पूर्व-सावधानी) हमला कर खुद को फिर से मजबूत नेता के रूप में स्थापित करने की सफल कोशिश की है। उनकी पुरानी चेतावनियां- ईरान इजरायल के लिए परमाणु खतरा बन सकता है, अब लोगों को गंभीर और दूरदर्शी लगने लगी हैं।

संकट से सहानुभूति तक

युद्ध से ठीक पहले तक नेतन्याहू की सरकार अल्पमत में जाती दिख रही थी। सबसे बड़ा विवाद अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स यहूदियों की अनिवार्य सैन्य सेवा को लेकर था, जिससे उनकी कोर वोटबेस नाराज़ थी। लेकिन ईरान के खिलाफ हमला होते ही पूरा देश एकजुट हो गया। यहां तक कि विपक्षी नेता यायर लैपिड ने भी खुलकर नेतन्याहू के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने लिखा, “राजनीतिक मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन इस समय ईरान पर हमला सही कदम है।”

जन समर्थन भी बढ़ा

हाल ही में एक इजरायली न्यूज़ चैनल द्वारा कराए गए सर्वे में 54% लोगों ने नेतन्याहू पर विश्वास जताया है, जो बीते महीनों की तुलना में काफी बड़ा उछाल है। जनता अब उन्हें फिर से ‘संकट में साहसी नेता’ के रूप में देखने लगी है।

अंतरराष्ट्रीय समर्थन में भी बदलाव

जहां पहले अमेरिका और यूरोपीय देश गाजा युद्ध को लेकर नेतन्याहू पर दबाव बना रहे थे, वहीं अब जब ईरान से सीधी जंग शुरू हुई है, तो वही देश इजरायल के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नेतन्याहू ने पूरी रणनीति उसी तरह रची, जैसे कभी विंस्टन चर्चिल ने युद्धकाल में ब्रिटेन के लिए की थी—मजबूती से नेतृत्व करना और हालात पर नियंत्रण लेना।

हालांकि राजनीति विशेषज्ञ डेनिस चारबिट का कहना है, “अगर ये युद्ध लंबा खिंच गया या अधिक नुकसानदायक हो गया, तो जनता का यह समर्थन फिर से विरोध में बदल सकता है।” यानी नेतन्याहू के लिए यह ‘जंग से बनी राहत’ अस्थायी भी हो सकती है।

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