कौन हैं ‘बेडरूम जिहादी’ जो सुरक्षाबलों के लिए बने सिरदर्द? जम्मू-कश्मीर में मचा रहे आतंक

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बीते कुछ दिनों में आतंक के खिलाफ भारत को बड़ी कामयाबी मिली है। ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन महादेव जैसी कार्रवाइयों से सुरक्षा बलों ने आतंक की कमर तोड़ने की कोशिश की है। जम्मू-कश्मीर में भी सेना का आतंकरोधी अभियान लगातार जारी है। इस बीच एक नई चुनौती सुरक्षा एजेंसियों की मुश्किलें बढ़ा रही हैं। यह चुनौती है ‘बेडरूम जिहादी’। अधिकारियों के मुताबिक बेडरूम जिहादी अपने घर से बाहर निकले बिना आतंकी साजिश रचते हैं, सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलाते हैं और लोगों को उकसा कर दंगे भड़काने की कोशिश करते हैं।

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सुरक्षा एजेंसियों ने बताया है कि हाल ही में एक जांच के जरिए पाकिस्तानी आतंकी समूहों से जुड़े एक बड़े सोशल मीडिया नेटवर्क की जानकारी सामने आई है। इन सोशल मीडिया हैंडल्स को पाकिस्तान के आतंकी समूह और उनसे जुड़े लोग चलाते हैं। अधिकारियों ने बताया कि ये नेटवर्क भारत के डिजिटल स्पेस में घुसपैठ कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन नेटवर्क का काम भड़काऊ चीजों का प्रसार कर कश्मीर घाटी में संप्रदायिक हिंसा और नफरत फैलाना होता है।

अधिकारियों ने बताया कि इस तरह के दुश्मन, पारंपरिक रूप से गोली बारूद और हथियारों से लड़ने की बजाय क्षेत्र में अशांति फैलाने के लिए एक क्रॉस बॉर्डर नेटवर्क चलाते हैं। मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया, “आतंकवादियों से लड़ने के अलावा, सुरक्षा एजेंसियां इस छिपे हुए दुश्मन का सामना कर रही हैं। नई पीढ़ी के जिहादी कहीं भी बैठकर, कंप्यूटर और स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके युद्ध छेड़ने और युवाओं को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं।”

फिर सामने आया खतरा

अधिकारियों के मुताबिक सबसे पहले 2017 में आतंकियों की यह साजिश उजागर हुई थी लेकिन 2019 में जम्मू और कश्मीर में धारा 370 के निरस्त होने के बाद इस पर कुछ हद तक विराम लगा था। हालांकि पिछले साल विधानसभा चुनावों के बाद से बेडरूम जिहादी फिर सामने आ गए हैं। अधिकारियों के मुताबिक पिछले कई हफ्तों से इसे लेकर एक जांच चल रही थी जिसमें हजारों सोशल मीडिया पोस्ट, बयान और पर्सनल मैसेज की जांच की गई। इनके विश्लेषण से पाकिस्तान से जुड़े समूहों और हैंडलर के बीच एक सीधा लिंक का देखने को मिला।

एक क्लिक से तबाही

अधिकारियों ने इन लोगों को डिस्क्राइब करने के लिए “बेडरूम जिहादी” शब्द गढ़ा है। यह लोग आभासी युद्ध के मैदान में उतरते हैं जहां जंग हथियारों की बजाय शब्दों से लड़ा जाता है। ये युवाओं के दिमाग पर प्रभाव डालते हैं और अफवाह फैलाने में पूरी ताकत लगा देते हैं। अधिकारियों के मुताबिक, “कोई भी, अपने बिस्तर या सोफे पर बैठकर, हजार चैट समूहों में से एक में एक फेक न्यूज चला सकता है और पूरे क्षेत्र में दंगे भड़का सकता है। सांप्रदायिक विभाजन में डूब सकते हैं।

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